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हम सभी के जीवन में कोई न कोई ऐसा दौर जरूर आता है, जब सब कुछ बिगडता नजर आता है। ऐसे में हमारा अत्मविश्वास ही हमें मुश्किलों से लडने की ताकत देता है।
शुरुआती दौर
जहां तक मेरे निजी अनुभवों का सवाल है तो एनएसडी दिल्ली से अभिनय का कोर्स पूरा करने के बाद 1996 में दूसरे कलाकारों की तरह मैं भी मुंबई पहुंचा। वहां जाने से पहले ही मैंने तय कर लिया था कि चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों न उठानी पडें, मैं हार नहीं मानूंगा। इसलिए वहां जाने के बाद शुरुआती दौर में मैंने वॉयस ओवर किया। इसके अलावा मैंने एक्टिंग स्कूल में नए कलाकारों को ट्रेनिंग देने का भी काम किया था। मनीष पॉल और अपूर्व अग्निहोत्री जैसे अभिनेता मेरे स्टूडेंट रह चुके हैं।
वजन बढाना पडा
मैं किसी काम को छोटा नहीं समझता। शुरुआती दिनों में मैंने कभी भी किसी बडे मौके का इंतजार नहीं किया, सामने जो भी काम आया उसे पूरा करता चला गया। ऐसे छिटपुट काम करके मेरा गुजारा तो चल रहा था, लेकिन मेरा असली लक्ष्य अभिनय की दुनिया में पहचान बनाना था। कुछ जगहों पर मैंने स्क्रीन टेस्ट दिया, लेकिन जहां भी जाता दुबलेपन की वजह से रिजेक्ट हो जाता। लोगों को वेट लॉस के लिए मेहनत करनी पडती है, पर मुझे अपना वजन बढाने के लिए काफी मशक्कत करनी पडी। शायद आपको यकीन न हो, पर काम पाने के लिए मैंने तीन महीने में 12 किलो वजन बढाया। फिर मुझे डीडी मेट्रो चैनल के सी हॉक्स नामक सीरियल में पहली बार अभिनय का अवसर मिला। इसके बाद धीरे-धीरे मेरी पहचान बनने लगी।
बहुत कुछ सीखा संघर्ष से
मुझे ऐसा लगता है कि जिस तरह आग में तपने के बाद सोना खरा सोना तैयार होता है, उसी तरह चुनौतियां और मुश्किलें हमारे व्यक्तित्व को मजबूत बनाती हैं। शुरुआत में कई बार नाकामी भी मिली, पर मैंने हार नहीं मानी। संघर्ष के दिनों ने मुझे हर तरह के हालात में एडजस्ट करना सिखा दिया। उन दिनों मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे। इसलिए मैं ज्यादातर बस, लोकल ट्रेन या ऑटो में ही सफर करता था। इसका फायदा यह हुआ कि आज अगर कभी मेरी कार खराब हो जाती है तो मैं ऑटो लेकर आराम से शूटिंग पर चला जाता हूं।
सपने होते हैं साकार
मुझे ऐसा लगता है कि हमारे मन में अपने सपने साकार करने का जुनून हो तो देर से ही सही, पर कामयाबी जरूर मिलती है। अभिनय के क्षेत्र आने की इच्छा रखने वाले अपने युवा साथियों से मैं यही कहना चाहूंगा कि वे यहां के ग्लैमर से प्रभावित होकर इस क्षेत्र में आने की भूल न करें। अगर सचमुच उनमें कुछ अलग कर गुजरने का हौसला और एक्टिंग का पैशन हो, तभी वे इस दुनिया में कदम रखें। यहां आने वाले युवाओं को भी कामयाबी के लिए कुछ वर्षो तक कडी मेहनत क रनी पडती है क्योंकि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।
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