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जहां से विश्वास टूटता है, वहीं से शक की शुरुआत होती है। यह सही है कि सभी पर आंखें मूंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता, लेकिन जब कोई अपने करीबी लोगों या छोटी-छोटी बातों पर शक करने लगे तो यह स्थिति उसके लिए ठीक नहीं है। इसलिए जहां तक संभव हो शक को आदत में तब्दील न होने दें।
क्यों होता है ऐसा
किसी भी इंसान के व्यक्तित्व को संवारने या बिगाडने में उसके बचपन के परिवेश का बहुत बडा योगदान होता है। अगर किसी का बचपन असुरक्षित माहौल में बीता हो, माता-पिता शक्की स्वभाव के हों, रंग-रूप, आर्थिक स्थिति या किसी अन्य कारण से हीन भावना हो तो उस व्यक्ति के मन में शक की भावना स्थायी रूप से घर कर जाती है। अगर इसे सही समय पर दूर नहीं किया गया तो इससे आगे चल कर पैरानॉयड स्क्रिजोफेनिया या डिल्यूजन डिसॉर्डर जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं। ऐसे लोगों के साथ सबसे बडी दिक्कत यह होती है कि किसी के भी साथ इनके संबंध अच्छे नहीं होते। खासतौर पर इनका दांपत्य जीवन बेहद तनावपूर्ण होता है। इस वजह से ऐसे लोग अपने जीवन में बहुत अकेले पड जाते हैं।
प्रमुख लक्षण
-करीबी लोगों पर अविश्वास
-हमेशा अकेले और उदास रहना
-हमेशा यह सोचकर डरना कि कोई मेरे साथ ठगी या धोखाधडी कर लेगा
-अपने अधीन या साथ काम करने वालों को हमेशा शककी नजरों से देखना
कैसे करें बचाव
-सबसे पहले अपनी समस्या को पहचान कर उसे दूर करने की कोशिश करें।
-समस्या की जडों को खुद ही ढूंढने की कोशिश करें कि कहीं आपको कोई ऐसा अनुभव तो नहीं हुआ, जिससे आपके विश्वास को ठेस पहुंची हो।
-सकारात्मक दृष्टिकोण वाले लोगों से दोस्ती बढाएं और उनकी अच्छी बातों से अपने भीतर बदलाव लाने की कोशिश करें।
-कभी कुछ ऐसे काम करें, जिससे आपको अपनी यह आदत सुधारने में मदद मिले। मसलन, किसी दोस्त को उधार देना, किसी परिचित को जरूरी काम सौंपना आदि। फिर थोडा इंतजार करें। जब लोग आपका विश्वास जीतने में कामयाब होंगे तो इससे आपका मनोबल बढेगा और धीरे-धीरे आपकी यह आदत भी दूर हो जाएगी।
-यह न भूलें कि विश्वास करने वाला नहीं, बल्कि धोखा देने वाला गलत होता है। अगर कभी किसी ने आपको धोखा दिया हो तो अपने मन में ग्लानि की भावना न आने दें।
-अगर कभी आपके मन में किसी के लिए शक की भावना पैदा तो उससे बातें करके उसी वक्त अपनी गलतफहमी दूर कर लें।
– किसी एक बुरे अनुभव के आधार पर अन्य लोगों के बारे में गलत पूर्वधारणा न रखें। दूसरों को भी मौका दें कि वे आपके सामने खुद को सही साबित कर सकें।
-अगर इन प्रयासों के बावजूद छह महीने के भीतर आपकी मन: स्थिति में कोई बदलाव न आए तो किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद लेने में संकोच न करें।
धैर्य से दूर हुआ शक
एक बार मेरे मन में अपनी घरेलू सहायक के लिए शक पैदा हो गया था। हुआ यूं कि मेरे सोने की इयररिंग खो गई थी और उसके बाद दो दिनों तक वह लडकी मेरे घर पर काम के लिए नहीं आई तो मुझे ऐसा लगा कि शायद उसी ने लिया होगा। दो दिनों के बाद जब उसने खुद ही मेरा इयररिंग ढूंढ कर दिया तो मुझे बहुत शर्मिदगी महसूस हुई। शक की वजह से हमारे अपने हम से दूर हो जाते हैं। इसलिए बिना सच्चाई जाने केवल शक के आधार पर हमें किसी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।
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