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बात सिर्फ पैसों की नहीं..

Jagran Sakhi
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कहा जाता है कि हर अच्छी आदत की बुनियाद बचपन में ही पडती है। हम अपने बच्चों को हर तरह से अच्छे संस्कार देने की कोशिश करते हैं, पर जब बात रुपये-पैसे की हो तो हम इस मुद्दे को अकसर नजरअंदाज कर देते हैं। हमें ऐसा लगता है कि बच्चों को इन गंभीर बातों से दूर ही रहना चाहिए, लेकिन उनके मन में ढेर सारे मासूम सवाल होते हैं। इसलिए हमें शुरुआत से ही अपने बच्चों को मनी मैनेजमेंट की जानकारी देनी चाहिए।


आओ सीखें खेल-खेल में

दो साल की उम्र के बाद बच्चे बोलना और चलना सीख जाते हैं। इस उम्र में वे बडों के हर व्यवहार को बहुत ध्यान से देखकर उसकी नकल करने की कोशिश करते हैं। जब वे बडों को पैसे संभाल कर रखते हुए देखते हैं तो उन्हें इस बात का एहसास हो जाता है कि यह कोई कीमती वस्तु है और इससे ही दुकानदार हमें चॉकलेट और खिलौने देता है। बाहर जाते समय तीन वर्षीया आयशा अपना छोटा सा पर्स जरूर ले जाती है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि उसे बिना पैसों के पर्स बिलकुल पसंद नहीं है। इसलिए उसकी मम्मी उसमें नकली ही सही पर कुछ करेंसी जरूर रखती हैं। इसी उम्र में बच्चे अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर कई तरह के नाटकीय खेल खेलते हैं। दुकान-दुकान बच्चों का प्रिय खेल होता है। इसमें बच्चे कागज से नोट बनाकर चीजें खरीदते-बेचते हैं। चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार के अनुसार, बच्चों को ऐसे गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे उन्हें अपने तरीके से बहुत सारी नई बातें सीखने-समझने को मिलती हैं। बच्चों के इस खेल में आप भी शामिल हो जाएं और बातों ही बातों में उन्हें बताएं कि किस तरह हर सामान की एक निश्चित कीमत होती है और पैसे दिए बिना दुकानदार हमें कोई सामान नहीं देता।


कहां से आते हैं पैसे

चार साल की उम्र के बाद जब बच्चे मम्मी-पापा के साथ पैसे निकालने के लिए एटीएम मशीन तक जाते हैं तो वे सोचते हैं कि इससे हम जितने चाहें उतने पैसे निकाल सकते हैं। ऐसे में बच्चों को यह समझाना बहुत जरूरी है कि इस मशीन में वही पैसे जमा होते हैं, जो पूरे महीने काम करने के बाद मम्मी-पापा को सेलरी के रूप मिलते हैं। इससे पैसे निकालने की भी एक सीमा होती है और हम उस निर्धारित सीमा से ज्यादा पैसे नहीं निकाल सकते। इसलिए हम लोग अपनी पसंद की सारी चीजें एक साथ नहीं खरीद सकते। सबसे अच्छा होगा कि आप अपने बच्चे को एक पिगी बैंक या गुल्लक खरीद कर दें। इससे उसमें बचत की आदत विकसित होगी। जब गुल्लक भर जाए तो उसे तोडकर बच्चे को पैसे गिनना सिखाएं। उसे बताएं कि ये तुम्हारी बचत के पैसे हैं और उन्हीं पैसों से उसके लिए उसकी मनपसंद चीजें दिलवाएं।


फर्क जरूरतों और इच्छाओं का

कई बार बडे भी ताउम्र इस फर्क को समझ नहीं पाते। बच्चों को यह अंतर समझाना मुश्किल तो जरूर है, पर नामुमकिन नहीं। इस संबंध में बाल मनोवैज्ञानिक गीतिका कपूर कहती हैं, छह साल की उम्र के बाद से ही बच्चों को यह समझाना शुरू कर देना चाहिए कि कुछ चीजें हमारे लिए जरूरी होती हैं और कुछ ऐसी होती हैं जिनके बिना भी हम आराम से रह सकते हैं। मिसाल के तौर पर अच्छा खाना, कपडे और घर हमारे लिए जरूरी हैं, पर अकसर लंच या डिनर के लिए बडे रेस्टोरेंट में जाना, ब्रैंडेड कपडे पहनना और बहुत महंगे घर में रहना हमारी जरूरत नहीं, बल्कि हमारे लिए लग्जरी है। इसके अलावा हर महीने शॉपिंग लिस्ट बनाते समय बच्चे को भी अपने साथ रखें। लिस्ट के बारे में बच्चे से उसकी राय जानने की कोशिश करें कि कौन सी ऐसी चीजें हैं, जिनमें कटौती करके आप पैसे बचा सकते हैं। अपने बच्चे को कहें कि वह खुद अपने लिए जरूरी चीजों और लग्जरी वस्तुओं की लिस्ट बनाएं। इससे आप उसे व्यावहारिक रूप से पैसे की अहमियत समझा पाएंगी। जब भी मौका मिले उसे शॉपिंग के लिए अपने साथ ले जाएं। इससे वह वस्तुओं की कीमत में तुलना और सही चीजों का चुनाव करना सीखेगा।


सच्चाई का एहसास

दस वर्ष की उम्र से बच्चों को उनकी सही सामाजिक स्थिति का एहसास दिलाना जरूरी होता है, ताकि आगे चलकर उनके मन में कोई हीन भावना न पनपे। बच्चे को समझाना चाहिए कि हर परिवार की आर्थिक स्थिति समान नहीं होती। कुछ लोगों के पास हमारी तुलना में बहुत ज्यादा पैसा होता है, जिससे वे अपने लिए ढेर सारी सुख-सुविधाएं खरीद सकते हैं, दूसरी ओर कुछ लोगों के पास बहुत कम पैसे होते हैं और उन्हें अपने लिए खाना-कपडा जैसी जरूरी चीजें जुटाने में भी बहुत दिक्कत आती है। कुछ बच्चों के परिवार के हालात ऐसे होते हैं कि अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उन्हें मजदूरी करनी पडती है। अपने बच्चे को ऐसे जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित करें। उसे एहसास दिलाएं कि हमारी स्थिति अच्छी है। हमें हर हाल में संतुष्ट और खुश रहना चाहिए। उसे यह समझाना भी जरूरी है कि हर खुशी पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। आप अपने बच्चे के साथ मिलकर ऐसी चीजों की लिस्ट बनाएं, जो उसके चेहरे पर मुस्कान ला सकती है, पर उसके लिए पैसों की जरूरत नहीं होती।


बच्चे को दें पॉकेटमनी

जब आपको ऐसा महसूस हो कि आपका बच्चा पैसे संभालने की जिम्मेदारी निभा सकता है तो आप उसे नियमित रूप से जेब खर्च देना शुरू करें। शुरुआत में पूरे महीने के लिए एक साथ पैसे देने के बजाय उसे साप्ताहिक रूप से जेब खर्च दें। अगर वह चाहे तो उन्हीं पैसों में से बचत भी कर सकता है। जब आप उसे पॉकेटमनी देंगी तो वह खुद अपने लिए चीजें खरीदेगा तभी उसे पैसे की असली कीमत मालूम होगी। ऐसे में वह सोच-समझकर खर्च करेगा। वह खुद ही अपने गैर जरूरी खर्चो में कटौती करेगा। जब आपको ऐसा लगे कि वह पैसों के मामले में जिम्मेदार बन गया है तब आप उसे पूरे महीने की पॉकेटमनी एक साथ दे सकती हैं। 12 साल की उम्र के बाद बच्चों को जेबखर्च दिया जा सकता है, पर उसे मनमानी करने की आजादी न दें। वह अपने पैसों को किन जरूरतों पर खर्च कर रहा है, आपको हमेशा इसकी जानकारी होनी चाहिए।


ख्ाुद बनें मिसाल

जब बच्चों को पैसे की अहमियत का एहसास हो जाता है तो वे बडों की खर्च करने की आदतों पर भी गौर करते हैं और उन्हीं की आदतों का अनुसरण करते हैं। इसलिए पेरेंट्स को भी चाहिए कि वे शॉपिंग के समय बच्चे को भी अपने साथ ले जाएं। कोई भी सामान खरीदते समय कीमतों की तुलना करने के बाद उचित मूल्य पर सबसे अच्छी चीज खरीदें। इसी तरह आप उसे सरल भाषा में बैंकों की कार्य प्रणाली के बारे में समझाएं। इससे आपका बच्चा खर्च और बचत के प्रति जागरूक बनेगा। साथ ही पैसों को लेकर उसका दृष्टिकोण भी संतुलित होगा।


यह भी न भूलें

– आपको भी िफजूलखर्ची से बचने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि बच्चे भी माता-पिता की आदतों का ही अनुसरण करते हैं।

– अगर आपको ऐसा लगता है कि आपका बच्चा इमोशनल होकर बिना सोचे-समझे कुछ भी खरीद लेता है तो ऐसी स्थिति से बचने के लिए आप उसे पूरे महीने की पॉकेटमनी एक साथ देने के बजाय उसे हर वीकएंड पर पैसे दें।

– कुछ पेरेंट्स पुरस्कार या दंड के रूप में पैसों का इस्तेमाल करते हैं। मसलन अच्छे काम के पुरस्कार स्वरूप पॉकेटमनी बढाना या गलती होने पर उसमें कटौती करना उनकी आदत होती है, पर ऐसा करते समय उन्हें बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि रुपये-पैसे से जुडा मामला बडा नाजुक होता है। अगर ऐसा करते समय बच्चे को तर्क सहित कारण न समझाया जाए तो उनके विद्रोही होने का खतरा रहता है।

-बच्चे में खर्च का हिसाब लिखने की आदत डालें। उसकी हर मांग आसानी से पूरी न करें, इससे उसकी आदतें बिगड सकती हैं।

-बच्चे को पैसों की शेयरिंग भी सिखाएं। उससे कहें कि वह भाई-बहनों के लिए अपने पैसों से गिफ्ट खरीदे। उसे जरूरतमंद बच्चों की मदद के लिए भी प्रेरित करें।

– बच्चे को जन्मदिन या त्योहार जैसे अवसरों पर चीजों के बजाय उपहार स्वरूप नकद राशि दें। इससे उसमें बचत की भावना विकसित होगी। जब उसके पास कुछ पैसे जमा हो जाएं तो आप उसका बैंक अकाउंट भी खुलवा सकती हैं।

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