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बस इसी पल का इंतजार था

Jagran Sakhi
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अनंत ने इस बार फिर योजना बनाई है कि नए साल में वे अपना आलस्य छोड देंगे। उन्होंने तय किया है कि सुबह 4 बजे उठेंगे और प्रतिदिन का काम उसी दिन करेंगे। ऐसा अब वे करेंगे ही, इसमें कोई अगर-मगर नहीं। नया साल आने में बीस दिन बाकी होने के बावजूद उनके इस संकल्प पर विशाखा ने उन्हें एक बार मुस्कराते हुए देखा और अपने काम में लग गई। यह बात अनंत को लगी तो है, फिर भी इसका उन पर कुछ खास असर होगा और उनकी यही इच्छाशक्ति बीस दिन बाद भी बनी रहेगी, यह सोचना खुद को झूठी दिलासा देने जैसा ही है। क्योंकि..

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क्योंकि ऐसा कोई पहली बार नहीं है जब वे सुबह जल्दी उठने का संकल्प ले रहे हों। विशाखा पिछले दस वर्षो से उन्हें यह संकल्प लेते और फिर बेचारे संकल्प को हर बार चकनाचूर होते देखती आ रही है। कई बार तो वे अपने इस संकल्प पर अमल की कोशिश भी कर चुके हैं, लेकिन दो-चार दिन के जोश के बाद फिर सब वही.. ढाक के तीन पात।


सिर्फ प्रतिभा काफी नहीं

अनंत में वह प्रतिभा है कि बडे से बडा काम आसानी से कर सकते हैं। ऐसी प्रतिभा का ही नतीजा है कि ऐसे प्रोजेक्ट बडी आसानी से उनके हाथ में आते हैं, जो दूसरों को बहुत कोशिश के बाद भी नहीं मिल पाते। इस नाते वे अपने कुछ साथियों के बीच ईष्र्या के पात्र हैं। इसके बावजूद स्वयं अपने लिए वे एक समस्या हैं। समस्या इस अर्थ में कि आज तक वह अपना ही टेंपरामेंट नहीं समझ सके। वे बडे से बडे प्रोजेक्ट को पूरा करने की क्षमता रखते हैं और कई बार करते भी हैं, लेकिन हमेशा नहीं। आम तौर पर उनकी छवि यह बनती जा रही है कि वे कोई भी काम अधूरा छोडकर दूसरे काम की ओर भाग सकते हैं। कब उनका मन किसी काम से उचट जाए, कहा नहीं जा सकता। विशाखा इसकी वजह उनकी अनुशासनहीनता और कुछ मामलों में इच्छाशक्ति की कमी मानती है, लेकिन स्वयं अनंत अपने को अनुशासनहीन नहीं मानते। अपनी नजर में वे एक ऐसे विशिष्ट व्यक्ति हैं, जिनकी प्रतिभा को उचित सम्मान नहीं मिला। हालांकि यह भी मानते हैं कि उन्हें उचित अवसर और सम्मान जरूर मिलेगा। मुश्किल असल में यहीं है। वे नहीं मिला और मिलेगा के बीच उलझ कर रह गए हैं और जो मिला है, यानी अभी हाथ में है, उसका न तो वे कोई उपयोग कर पा रहे हैं और न उससे कोई लाभ उठा पा रहे हैं। क्योंकि वे या तो अतीत में जीते हैं या फिर भविष्य में। संभावनाएं उनमें सचमुच अनंत हैं और चाहत भी, लेकिन इच्छाशक्ति नहीं।


मंजिले  उनकी जो चले

उदाहरण इतिहास से लें या पुराणों से, या फिर आज के अपने आसपास के समाज से ही क्यों न देख लें, किसी मंजिल तक सिर्फ वे ही पहुंच सके हैं जो अतीत और भविष्य को छोड कर सिर्फ वर्तमान में जीने की कला जानते हैं और उसे अपने जीवन में उतारते हैं। क्योंकि मंजिलें उन्हीं की हैं जो निकल पडे सफर पर। जो पिछले पडाव को पकड कर बैठ गए, उनके कहीं पहुंचने की उम्मीद नहीं की जा सकती और न उनके ही जो मंजिल के सुनहरे सपने में खो गए। अतीत और भविष्य को छोड देने का यह अर्थ बिलकुल नहीं कि आप अपने बीते जीवन के अनुभवों से सीख या उनका कोई लाभ न लें और भविष्य के लिए कोई योजना न बनाएं। जो लोग अपने बीते जीवन के अनुभवों को दरकिनार कर देते हैं, उससे सचेत नहीं होते, उन्हें बार-बार ठोकरें खानी पडती हैं। ठोकरें खाना वैसे कोई ख्ाराब बात नहीं है, लेकिन तब जब कोई ठोकरें खाकर संभल जाए। यह ठोकरों का सार्थक और रचनात्मक उपयोग होगा। जैसा कि डैनिश दार्शनिक सोरेन कीकरगार्द कहते हैं, जीवन को समझा केवल अतीत से ही जा सकता है, लेकिन इसे जीना होता है भविष्य की ओर देखते हुए।


भविष्य पर नजर

आम तौर पर ऐसा होता नहीं है। होता यही है कि अतीत में जीने वाले लोग या तो अपने सुनहरे अतीत के गौरव में खोए रहते हैं या फिर बीते कल के दुखों को याद करके सुखद आज को भी दुख से भर लेते हैं। अगर किसी ने अतीत में उनके साथ कुछ गलत व्यवहार किया है तो वे उसे ही पकड कर ठहर जाते हैं।


ठीक इसी तरह भविष्य के प्रति सचेत होना एक बात है, लेकिन भविष्य में ही जीने लग जाना बिलकुल दूसरी। बिना योजना बनाए किसी भी काम की सफलता संदिग्ध है। लेकिन भविष्य में मिलने वाले परिणाम को लेकर कल्पना में जीने लग जाना कोई समझदारी नहीं है। बेशक, मानवाधिकार कार्यकर्ता अन्ना एलीनोर रुज वेल्ट की इस बात को चुनौती नहीं दी जा सकती, भविष्य उन्हीं का होता है जो अपने सपनों की सुंदरता में यकीन करते हैं। हम अपने जीवन को सही दिशा दे सकें, इसके लिए जरूरी है कि हमारा लक्ष्य स्पष्ट हो। साथ ही, उस तक पहुंचने के लिए एक सुविचारित योजना और ईमानदार प्रयास हो। अगर ये तीनों चीजें नहीं हैं और कोई केवल सपना लेकर मन ही मन खुश होता रहे तो उसके लिए ब्रिटिश राजनेता विंस्टन चर्चिल की बात ही सही बैठती है, भविष्य के साम्राच्य केवल मन के साम्राच्य हैं।

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मन के साम्राज्य

इस मन के साम्राज्य में बहुत बडी-बडी घटनाएं घटती हैं। उस आलसी और स्वप्नजीवी आदमी की कहानी आपने सुनी ही होगी, जिसे कोई खीर दे गया था। आलस्य के मारे वह उठकर खीर भी खाने का कष्ट नहीं उठा सका, लेकिन लेटे-लेटे सोचता रहा कि इस कटोरे खीर से वह क्या-क्या कर सकता है। आख्िारकार सपने में ही उसे गुस्सा आ गया। गुस्से में उसका ही डंडा लगा और खीर से भरा बर्तन टूटकर नीचे आ गिरा। फिर सारे सपने चकनाचूर। मन के साम्राज्य का अकसर यही हश्र होता है। ये वास्तविक जीवन में या तो होते ही नहीं हैं या फिर अगर होते हैं तो दुखद होते हैं। इसलिए मन में केवल योजनाएं बनाएं और उन्हें अमली जामा पहनाने का काम आज और अभी से शुरू करें। अतीत के सभी कडवे अनुभवों और भविष्य की सभी आशंकाओं से मुक्त होकर। जैसा कि कबीर ने कहा है, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब..।


..दो इंतजार  में

जब जागे तभी सबेरा का फंडा अपनाते हुए शुरू हो जाएं। चाहे आपने वेट लॉस के लिए जॉगिंग की बात सोची हो, या किसी ख्ास उद्देश्य से बचत की, गिटार सीखना चाहते हों या कोई किताब पढना चाहते हों, जिम ज्वाइन करना चाहते हों या किसी प्रिय व्यक्ति से किसी कारणवश टूट गए संबंध सुधारना चाहते हों.. किसी भी बात के लिए पहली तारीख्ा के इंतजार की जरूरत नहीं। तारीख्ा का इंतजार करेंगे तो इंतजार के सिवा कुछ और हाथ न लगेगा। फिर गालिब की तरह कहना पडेगा, लाए थे मांग कर उम्र-ए-दराज चार दिन/ दो आरजू में कट गए, ..दो इंतजार में।


गालिब के इस निष्कर्ष तक असल जिंदगी में कोई पहुंचना नहीं चाहता। इसलिए बेहतर है कि अमेरिकी लेखक बिल कीन की बात मानें, बीता हुआ कल इतिहास है, आने वाला कल एक रहस्य। केवल आज है, जो हमारे हाथ में ईश्वर का दिया उपहार है। यही वजह है जो इसे हम वर्तमान यानी वरदान कहते हैं।


अभी उतार दें मन का बोझ

किसी ने कभी कुछ कह दिया या कुछ ऐसा बर्ताव कर दिया जो अप्रिय लगा.. कुछ लोग उसी बात या व्यवहार को पकड कर बैठ जाते हैं। समय का स्वभाव है आगे बढना, वह चलता रहता है और उसके साथ-साथ समाज भी। लेकिन, जो लोग किसी ख्ाराब बात या व्यवहार को पकड कर बैठ जाते हैं, वे वहीं ठहर जाते हैँ। उसके आगे नहीं बढ पाते। उस एक ख्ाराब बात या व्यवहार को ही वे इस तरह पकड लेते हैं कि उसकी बाकी अच्छी बातें और व्यवहार, यहां तक कि एहसान भी भूल जाते हैं। केवल वही एक बात उन्हें याद रह जाती है। ध्यान रहे, ऐसे लोग स्वयं अपने लिए भी बोझ बन जाते हैं।


अगर आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ हो, तो बेहतर होगा कि उसे छोडकर आगे बढें। सोचें कि जिसने आपके साथ ख्ाराब व्यवहार या काम किया, उस समय स्वयं उसकी अपनी मन:स्थिति क्या थी। यह भी याद करें कि उसने आपके साथ अच्छे व्यवहार भी किए हैं और निश्चित रूप से उनकी संख्या ज्यादा है। यह सोच न केवल आपके संबंधों, बल्कि व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक होगी।


अरे दौडो यार, वरना..

अगर आपको लगता है कि सेहत महत्वपूर्ण है और इसके लिए आप नए साल में यानी पहली जनवरी से मॉर्निग वॉक शुरू करने की सोच रहे हैं तो उसके लिए इंत•ार की क्या •ारूरत है। छोडिए तारीख का चक्कर, यह काम आज से शुरू करें। कुछ इस तरह गोया ट्रेन छूट रही हो और अगर आपने एक मिनट की भी देर की तो.. भविष्य की चिंता नहीं,

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Tags:career and future, future life, present life, past life, वर्तमान और भविष्य, भविष्य

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