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सुजय की उम्र है सिर्फ 17 साल और प्रेम उम्र का तीसरा दशक पार कर चुके हैं। सुजय से भी छोटी उम्र के कई किशोर लडके-लडकियां और प्रेम से अधिक उम्र के कई स्त्री-पुरुष इस मायाजाल में फंसे हैं। इसके चलते कई लोगों के घर तबाह हो रहे हैं, तो कई के कारोबार या पढाई। जिसने भी इधर असावधानी से कदम बढाया, वह असली दुनिया से अलग एक दूसरी ही दुनिया में जीने का आदी होता गया। वैसे ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिन्होंने इंटरनेट के जरिये संपर्क में आए शख्स से शादी की और अब अच्छा पारिवारिक जीवन जी रहे हैं। बहुत लोगों को इंटरनेट के ही मार्फत नौकरियां मिलीं और कई तो इसी तरह व्यापार कर रहे हैं। शेयरों की खरीद-फरोख्त व सूचनाएं जुटाने के लिए सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला माध्यम अब इंटरनेट है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करने वालों से लेकर सफलता के शिखर छू रहे कई प्रोफेशनल्स और एक्सपर्ट्स तक इसका उपयोग कर रहे हैं। ब्लॉग्स के जरिये अपनी रचनात्मक क्षमता दुनिया के सामने रखने से लेकर विचारों के आदान-प्रदान तक का क्रम चल रहा है। समान विचारधारा, मुद्दों और विधाओं पर काम कर रहे लोगों के बीच संबंध भी बन रहे हैं। सोशल नेटवर्किग साइट्स से राजनेता अपने समर्थकों की संख्या, तो सेलब्रिटीज फैन फॉलोइंग बढा रहे हैं। आम लोग वास्तविक संपर्क का दायरा तो बढा ही रहे हैं, कुछ लोग सामाजिक जागरूकता के लिए मुहिम भी चला रहे हैं।
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संयम बहुत जरूरी
किसी भी अन्य वैज्ञानिक आविष्कार की तरह सूचना तकनीक भी अपने-आपमें निरपेक्ष है। न तो अच्छा और न बुरा। इसका अच्छा या बुरा होना इस बात पर निर्भर है कि कोई इसका कैसा उपयोग कर रहा है। संभलना या फिसलना यहां उम्र नहीं, समझ और संयम पर निर्भर है। क्योंकि सभी विषयों पर ज्ञान के भंडार से लेकर एडल्ट गेम्स तक यहां बिना रोक-टोक के उपलब्ध हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाज शास्त्र के प्रोफेसर तिला कुमार इसे मेक बिलीव वर्ल्ड कहते हैं। प्रो.कुमार के अनुसार, यहां दुर्लभ ज्ञान का भंडार भी है और यथार्थ से तोडकर कल्पना के अथाह समुद्र में बहा ले जाने के साधन भी। दुर्भाग्य से आज हकीकत से मुंह चुराने वाले पलायनवादी लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है और उन्हें यह दुनिया बडे अवसर उपलब्ध कराती है। आभासी दुनिया की सच्चाई का आभास उन्हें तब होता है, जब वे बहुत कुछ खो चुके होते हैं। कल्पना में जीने की लत तो एक खतरा है ही, इससे भी बडा खतरा ठगों के शिकार बन जाने का है।
तकनीक नहीं, दुष्प्रभाव से बचें
सच्चाई यह है कि सूचना तकनीक आज दुनिया के विकास की प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है। पिछली सदी की शायद यह सबसे महत्वपूर्ण देन है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए ही इसे स्कूल कैरिकुलम में शामिल किया गया है। ऐसी स्थिति में इससे दूर होना क्या खुद को पीछे छोडने जैसा नहीं होगा? इस पर प्रो. कुमार का जवाब है, बात तकनीक से नहीं, उसके दुष्प्रभाव से बचने की है। वयस्कों में तो इसके व्यसन के शिकार अधिकतर ऐसे ही लोग हैं जो अपने पारिवारिक जीवन से असंतुष्ट हैं, लेकिन बच्चों का मामला उनसे ज्यादा गंभीर है। बच्चों को इससे बचाना बडी चुनौती है। कंप्यूटर-इंटरनेट या नई तकनीक से जुडी किसी भी चीज का इस्तेमाल करते समय उन पर नजर तो रखी ही जानी चाहिए, साथ ही उन्हें वास्तविक और वर्चुअल वर्ल्ड का फर्क समझाना बेहद जरूरी है। निगरानी से भी ज्यादा जरूरी उन्हें ऐसे संस्कार देना है कि वे अपनी सोच हर हाल में यथार्थपरक बनाए रखें।
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Tags: modern lifestyle, modern value
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