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छोटी-छोटी खुशियों से बात बन गई

Jagran Sakhi
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स्मॉल इज द न्यू बिग..अंग्रेजी की यह कहावत इस दौर को पूरी तरह परिभाषित करती है। एक जमाना था जब बडा बंगला, बडी गाडी, भरा-पूरा परिवार, भारी-भरकम फर्नीचर और गैजेट्स संपन्नता की निशानी समझे जाते थे। आज स्थिति इसके उलट है। घर-परिवार, गैजेट्स, गाडियां, फिल्में, मॉल्स-मल्टीप्लेक्सेज, डाइट और आउटफिट्स तक सब मिनी हो चुके हैं। एसएमएस और टी 20 का दौर है। जीने का यह नया अंदाज कैसा है, जानते हैं इस कवर स्टोरी में।


swt homeइक बंगला फ्लैट बने न्यारा


क्या आपके सपनों में अब भी हरे-भरे पेडों और खूबसूरत लॉन से सजा हुआ कोई बडा सा बंगला आता है? क्या आप अब भी इक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा..वाला गाना गुनगुनाते हैं? तब आप पुराने जमाने के बाशिंदे हैं। यह जान लें कि अब न बंगले बचे-न ही कुनबे। अब तो वन बीएचके, टू या थ्री बीएचके के बाद स्टूडियो अपार्टमेंट्स का जमाना है।


हम दो हमारे दो एक

चाचा-चाची, दादा-दादी, बुआ, चचेरे भाई-बहन और कम से कम पांच-दस सगे भाई-बहन…। क्रिकेट खेलने के लिए बाहर से क्यों खिलाडी जुटाए जाएं, जब पूरी टीम घर में मौजूद हो। लेकिन अब कहां अफोर्ड किए जा सकते हैं ये लंबे-चौडे परिवार। भारत सरकार ने बरसों पहले नारा दिया था,हम दो-हमारे दो। व्यस्त युवाओं को चीन की बात भा गई, हम दो-हमारा एक । बात तो इतनी दूर तक चल निकली कि डबल इनकम नो किड तक आ पहुंची। 2437 वाली जीवनशैली में बच्चे सीन से गायब होते जा रहे हैं। दिल्ली की एक पी.आर. कंपनी में काम करने वाली प्रज्ञा की शादी के तीन-चार साल हो चुके हैं। बच्चा.. ! चौंक कर उल्टे हमसे सवाल करती है, पालेगा कौन? क्रेश में छोडें या मेड के भरोसे रखें? ना बाबा ना, हम अभी बच्चा अफोर्ड ही नहीं कर सकते। यह अफोर्ड शब्द कुछ ज्यादा ही चलन में नहीं आ गया है!

Read:नजदीकियां बढ़ानी है तो…..


बस एक लखटकिया नैनो चाहिए

कल्पना कीजिए कि सुबह नौ बजे ऑफिस पहुंचने की मारामारी हो, सडक पर कई किलोमीटर लंबा जाम हो। आप पसीने-पसीने होकर मायूसी से बार-बार घडी देख रहे हों, झींक रहे हों-खीझ रहे हों। ऐसे में कोई छोटी सी गाडी दायें-बायें से निकलकर आगे बढ जाए तो दिल में कैसी हूक उठती है! दिल्ली स्थित एक कंपनी के मार्के टिंग हेड अखिलेश कहते हैं, कई वर्ष पूर्व मैंने मारुति 800 खरीदी थी। बाद में तरक्की हुई, क्लाइंट्स बढे तो लंबी गाडी खरीदी। सच कहूं तो दिल्ली में ट्रैफिक का जो हाल है, उसमें ऑफिस जाने के लिए मुझे अकसर पुरानी गाडी ही निकालनी पडती है। हमें लगभग रोज क्लाइंट्स के संपर्क में रहना पडता है। नई और बडी गाडी का थोडा रौब तो पडता है, लेकिन दिल्ली में लंबी गाडी लेकर चलने का मतलब है मुसीबत मोल लेना।

टाटा जब अपनी नन्ही सी नैनो लेकर आए तो लोगों की भीड जुट गई उसे देखने के लिए। हालत यह है कि दो लाख से ज्यादा लोगों ने इसके लिए ऑर्डर बुक कराए हैं। डिमांड ज्यादा है-सप्लाई कम। नैनो के बाद महिंद्रा ने निसान के साथ मिलकर और बजाज ने रेनो के साथ मिलकर छोटी कार लाने की घोषणा की है। कंपनियों के बीच जंग अब यह है कि कौन छोटी से छोटी गाडी में बडी गाडी की तमाम सुविधाएं दे सकता है।

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