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परियों में से एक परी है मां !!

Jagran Sakhi
Jagran Sakhi
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एक बच्चा जन्म लेने जा रहा था। उसने भगवान से पूछा, आप मुझे कल नीचे पृथ्वी पर भेज रहे हैं, मैं इतना छोटा और असहाय हूं, वहां जाकर कैसे रहूंगा?


भगवान बोले, बहुत सारी परियों में से एक परी मैंने तुम्हारे लिए चुनी है। वही तुम्हारी देखभाल करेगी। पर मुझे बताइए, मेरे साथ वहां क्या होगा, मैं वहां क्या करुंगा? यहां स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता, हंसने और गाने के सिवाय, इसी से मुझे खुशी मिलती है।


वह परी तुम्हारे लिए हर दिन गाएगी व मुसकराएगी, तुम्हारी हर खुशी का खयाल रखेगी और धीरे-धीरे तुम्हें नया भी बहुत कुछ सिखाएगी।


वहां के लोगों की भाषा व बात मैं कैसे समझूंगा?


वह परी तुम्हें मधुर शब्दों में सब समझाएगी और तुम्हें बोलना भी सिखाएगी। और जब मैं आपसे बात करना चाहूंगा तो क्या करूंगा? वह परी तुम्हें हाथ जोड कर मेरी प्रार्थना करना सिखाएगी, जिससे सीधे न सही, पर भावनात्मक स्तर पर हमारी-तुम्हारी बातचीत होगी जरूर।


मैंने सुना है कि पृथ्वी बुरे आदमियों से भरी पडी है, मेरी रक्षा कौन करेगा?

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वह परी अपनी जान पर खेल कर भी तुम्हारी रक्षा करेगी। आपको देख न पाने के कारण, आपके बारे में जान न पाने के कारण मैं उदास हुआ तो..। वह ही मेरे बारे में तुम्हें बताएंगी। सब तरफ से हार जाने पर बच्चा समझ गया कि उसका नीचे जाना तय है। हार कर उसने पूछा कि भगवन, मैं जा रहा हूं, पर जिसके पास जा रहा हूं, आप मुझे उस परी का नाम तो बता दीजिए। उसका नाम बहुत मायने नहीं रखता, पर तुम उसे मां बुला सकते हो। यह है मां बच्चे के बीच की असली कहानी। यह सच है कि एक बच्चे के नजरिए से देखें तो सदियों पहले का बच्चा हो या आधुनिक बेबी, भारत में जन्म लिया हो या अमेरिका जैसे हाई-फाई शहर में या पिछडे हुए किसी गांव में, उसकी जरूरतें समान होती हैं।



कभी-कभी बूलना भी पड़ता है


मां की भूमिका

बच्चे की पहली सहायक, पहली अध्यापिका, पहली ट्रेनर, पहली दोस्त, पहली मार्गनिर्देशक मां ही होती है। वह ही सब कुछ सिखाती है बच्चे को। अंतर केवल इतना आया है कि बच्चे की जरूरतों व आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीके जरूर बदल गए हैं। उन्हें आराम से रखने के तरीके, उनको सुविधाएं देने के तरीकों में बदलाव आया है। मां आज बच्चों के आराम का खयाल दूसरे ढंग से रखती हैं, उनकी सुविधाओं की चिंता का तरीका भी उनका अलग है।


वक्त बदल गया है

इसमें संदेह नहीं कि अब समय ने करवट बदली है। बहुत कुछ बदला है, हमारी सोच में भी बदलाव आया है व रहने-सहने के तरीके में भी। आज मां बनते ही बच्चे के पीछे मां सब कुछ भूल नहीं जाती, वह अपनी फिटनेस व करियर को लेकर भी उतनी ही सजग है, जितनी अपने परिवार को लेकर। यह बदलाव केवल ग्लैमर व मॉडलिंग की दुनिया की स्त्रियों में ही नहीं, आम स्त्री में भी आया है। मनोचिकित्सक नवीन कुमार कहते हैं कि यह बदलाव बहुत हद तक गलत भी नहीं है। अपने को चुस्त-दुरुस्त रखने का विचार गलत कैसे हो सकता है। उम्र कोई भी हो फिट रहना ही चाहिए। अच्छी सेहत लंबे व स्वस्थ जीवन का पर्याय है। कौन ऐसा होगा जो इसे पाना नहीं चाहेगा। लेकिन इसे पाने में आप खो क्या रहे हैं, यह ध्यान जरूर रखिए। कई बार यह संतुलन बिगडने पर ही समस्याएं आती हैं। ऐसा न हो कि यह इच्छा आप पर इतनी हावी हो जाए कि आप अपने आगे परिवार व संतान को भुलाकर अपने को फिट रखने के पीछे पागल हो जाएं। प्राथमिकताएं तय करना व उनको अहमियत देना आपके हाथ में होता है, उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।


सुंदरता छिपी है सेहत में

सोच स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। सभी सकारात्मक सोच का असर हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा असर होता है और यही अच्छी सेहत का मूल कारण बनता है। जब अच्छी सेहत होगी तभी सुंदरता भी निखर कर आएगी। ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आएगा, जो खराब सेहत के बावजूद सुंदर नजर आए। शायद यही कारण है कि आज की मां हर क्षेत्र में सफल व सुखी है और यही संतोष उसके व्यक्तित्व पर परिलक्षित होता है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि यदि वास्तव में स्त्रियों के किसी वर्ग में नाटकीय परिवर्तन आया है तो वह 50 से 60 साल की उम्र वाली स्त्रियों के बीच ही आया है। उनका मत है कि आजादी के बाद उच्च शिक्षा पाने वाली यह पहली पीढी है। परिवार व अपनों को पूरा सहयोग व प्रोत्साहन इन्हें मिला और इनकी सजगता भी बढी। इस पीढी ने अपने को शिक्षित करने के साथ सीमित परिवार व बहुउद्देश्यीय जीवन को साकार किया। सौंदर्य विशेषज्ञों व फिटनेस एक्सपर्ट का तर्क है कि इक्कीसवीं सदी तक आते-आते स्त्रियों की जिंदगी में अभूतपूर्व परिवर्तन आए। उनकी आर्थिक निर्भरता के साथ पारिवारिक हैसियत बढी और स्वयं के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने की ललक ने भी पैर पसारे। आज वे पार्लर जा कर स्पा व अरोमा का आनंद ले सौंदर्य वृद्धि करने में, अपनी ड्रेस सेंस को सुधार कर ग्रूमिंग क्लासेस लेने में भी पीछे नहीं। इन सब कारणों से वे ज्यादा स्टाइलिश, बेहद आकर्षक व पहले से कहीं अधिक फिट नजर आती हैं। अपने परिवारजनों की वे अच्छी दोस्त भी हैं। इतनी उपलब्धियों के बाद न केवल उनकी सुंदरता बढी है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढा है और तो और रिश्तों का जुडाव भी बेहतर हुआ है।



जिम्मेदार है मीडिया

परदे पर नानी-दादी बन चुकी नायिकाओं का चमकता-दमकता सौंदर्य देख कर कौन उनके जैसा न बनना चाहेगा। पहले जहां दादी-नानी का रोल ललिता पवार व निरूपा राय, जैसी वरिष्ठ स्त्रियां निभाती थीं, वहीं आज वे भूमिकाएं तनूजा व हेमा जैसी ग्लैमरस अभिनेत्रियां निभा रही हैं। साठ के दशक में पहुंची हेमा मालिनी को देख कौन यकीन करेगा कि इतने चमकदार चेहरे व आकर्षक शरीर की हेमा ने उम्र को चुरा लिया है। आज भी उनकी ड्रीम गर्ल की छवि किसी नई उम्र की नायिका के सामने चुनौती से कम नहीं। फिर भी वे अपनी बेटियों की आदर्श है। जया, शर्मिला भी ऐसी शख्सीयतें हैं जो साठ के दशक में पहुंच कर भी आकर्षक और खूबसूरत हैं और अपनी संतानों के लिए आदर्श हैं।


थोड़ा नखरा और थोड़ी शरारत


उनके बच्चों से उनके बारे में बात करके ही वे भावुक होकर उनकी तारीफ करते नहीं थकते। इन सभी स्थितियों को यहां तक पहुंचाने में मुख्य व कारगर भूमिका निभाई है आर्थिक उदारीकरण की भावना व विश्व स्तर पर होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भारतीय स्त्री के पडते सफल कदमों ने। इन्हीं सफलताओं ने आज की स्त्री के सौंदर्यबोध को झकझोर कर रख दिया है। बाम्बे डाइंग की डायरेक्टर व ग्लैडरैग्स फैशन पत्रिका की संपादक मॉरीन वाडिया ने मिसेज इंडिया ब्यूटी कॉम्पटिशन के माध्यम से शादी के बाद बंद हो जाने वाले रास्तों को खोलने में अहम भूमिका निभाई। उनका कहना था कि विवाह कोई अंत नहीं है जिंदगी के सफर का, न ही हमारी खुशियों व अधिकारों का। जरूरत है इसे समझने की और अपनी खूबसूरती व खूबियों को उजागर करने की। लेडी हार्डिग की मनोचिकित्सक डॉ. जयंती दत्ता का कहना है कि लगातार इतने बदलाव आए और इतनी तेजी से आए कि स्त्री हतप्रभ- सी हो गई। हालांकि उसके लिए अभी स्थितियां उतनी आसान नहीं हैं, जितनी बाहर से दिखाई दे रही हैं, लेकिन यह जरूर है कि आज मां का संबंध अपने बच्चों से दोस्ताना है। आज का बच्चा अपनी हर समस्या या खास पल को मां के साथ शेयर कर सकता है। अब वहां पहले जैसे डर व शंका की जगह नहीं है। एक तरह से यह अच्छा संकेत है।


हर उम्र की स्त्री है सजग

आज हर उम्र की स्त्री अपने सौंदर्य व फिटनेस को लेकर सजग है। इसमें बुराई भी नहीं है। यह एहसास कि वह आज भी युवा, सुंदर व ग्लैमरस है आपके व्यक्तित्व का सकारात्मक पहलू है। यही वजह है कि जूही चावला, काजोल व माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्रियों का करियर मां बनने के बाद भी सफलतापूर्वक चल रहा है। लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब नाती-पोते अपनी दादी-नानी के रोमैंस व आकर्षण की बातें करने में हिचकिचाहट महसूस नहीं करेंगे।


बाह्य सौंदर्य के साथ आंतरिक सौंदर्य है मां की खूबी

सोहा अली खान (पुत्री शर्मिला टैगोर)

बचपन से अम्मी ने हम तीनों भाई-बहनों को नाजों से पाला है। भाई (सैफ) और मुझमें 10 साल का अंतर है इसलिए भाईजान हमारे लिए माता-पिता से कम नहीं हैं। अम्मी समय की गति के साथ चलीं, उन्होंने अचानक फिल्मों से संन्यास नहीं लिया। जब भाई के वक्त वे प्रेग्नेंट थी, तो भी उन्होंने फिल्म पूरी की। अम्मी के संपर्क में जो कोई भी आता है, प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। मॉम में कुछ ऐसी बातें हैं, जो सामने वाले को आकर्षित करती ही हैं। वह बेहद बुद्धिमान स्त्री हैं। डैड ने उनसे शादी महज उनकी खूबसूरती देखकर नहीं की। उनकी खूबी उनका आंतरिक सौंदर्य भी है। वो दिल की साफ हैं, बुद्धिमान हैं। आज भी दुनिया के किसी भी जटिल समस्या पर वह बात कर सकती हैं। लोगों की यह मान्यता गलत है कि सुंदरता व बुद्धि का संयोग कठिनाई से मिलता है।

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बात सुंदरता की हो, तो मैं यह जरूर कहूंगी, कि उनकी सुंदरता देख कर ही उन्हें कश्मीर की कली फिल्म के लिए साइन किया गया होगा। ईवनिंग इन पेरिस फिल्म के लिए उन्होंने जब 1970 के दौरान टू पीस बिकनी पहनी थी, तो काफी हो-हल्ला हुआ था। सच तो यह है कि उन्होंने फिर कभी बिकनी वाले शॉट नहीं दिए, पर लोग उन्हें इस बात के लिए भूले नहीं। वह कहती हैं, जो भी करो, चाहे वह अच्छा हो बुरा, उसे पूरी शिद्दत के साथ स्वीकारो। बीती बातों पर यदि पछतावा करोगे, तो जीवनभर उस आग में झुलसोगे। कभी-कभी किसी उम्र में इस तरह की हरकतें हो भी जाती हैं, जिनका एहसास बाद में होता है। पर उस सच्चाई का सामना करने में ही जीवन की खुशियां हैं। मैंने उनसे उस तरह का जिंदगी का फलसफा बहुत जाना है। जो बातें उनसे सीखी हैं, जीवन के किसी भी ग्रूमिंग स्कूल में या एक्टिंग स्कूल में नहीं सीखीं। वह एक कम्प्लीट स्कूल हैं।

उनके समय में मुख्य नायिकाओं को सेक्सी टैग लगाने का कोई प्रचलन नहीं था। पर जो भी हो, उन्होंने तवायफ से लेकर प्रोफेसर और डॉक्टर तक सभी किरदार ऐसी संजीदगी से निभाए कि उनकी कोई इमेज नहीं बनी, बल्कि उन्हें लोग संपूर्ण अभिनेत्री कहते रहे। उनके अफेयर के चर्चे भी नहीं रहे, क्योंकि वह पापा से शादी करके घर बसा चुकी थीं। हम बच्चों के लिए वे एक संपूर्ण स्त्री हैं। हर नाता जो उन्होंने निभाया, शायद ही कोई निभा पाता। धन-दौलत, शोहरत, सब कुछ पाकर भी उनमें कोई घमंड नहीं आया, न किसी तरह के ऐसे मामले पैदा हुए, जिससे परिवार बिखर जाए। वो फ्रेन्ड, फिलॉसफर, गाइड सब कुछ हैं। वो चाहती है, बच्चे अपनी गलतियों से खुद सीखें। मॉम ने मुझे मेकअप के सारे गुर सिखाए। वो खाना बनाने और गार्डनिंग में भी माहिर हैं। लोग आज भी मेरी उनसे तुलना करते हैं, जबकि मेरा करियर बन रहा है। मुझे खुशी है कि मैं उनके जैसे दिखती हूं। मेरी तुलना जब कश्मीर की कली से हो, और वो कश्मीर की कली की मेरी मां हो, तो कौन बेटी खुश नहीं होगी? मुझे आगे जाना है। यह खुशी क्या कम है, कि 60 साल की मेरी अम्मी आज भी ग्लैमरस लगती हैं। मैं भी भविष्य में उनके जैसी दिखूंगी।

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जो भी मिला उन्हीं की बदौलत मिला

कविता पौडवाल-तुलपुले (पुत्री अनुराधा पौडवाल)

मेरी मां बच्चों, पापा और पूरे पौडवाल परिवार से इस कदर जुडी रहीं कि इस युग में शायद ही कोई करियर ओरिएंटेड स्त्री अपने परिवार से इस हद तक जुडी हुई हो। मम्मी का हम बच्चों से कितना गहरा लगाव है, इस बात का इल्म तब मुझे नहीं था, जब मैं खुद बच्ची थी। मैं जब खुद मां बनी, तो मैंने अपनी मां के जुडाव को महसूस किया। मां एक नैचरल इंस्टीटयूशन हैं, जो हमसे दूर होकर भी हमारे दिल का हाल समझती हैं। मां ने अपने व्यावसायिक जीवन में जो भी संघर्ष किया, जो भी उतार-चढाव उनके करियर में आए, उसका साया हम पर कभी पडने नहीं दिया। सफलता की कीमत अकसर सेलेब्रिटीज को चुकानी पडती है। मां भी इस कडवी सच्चाई से अछूती नहीं रहीं, पर उसका हलका-सा असर भी उन्होंने हम पर पडने नहीं दिया।


बचपन में मुझे आंखों के सामने हमेशा मॉम चाहिए थी। सुबह आंख खुलने से लेकर स्कूल से लौटने तक, अपने लिए कपडों के चयन तक। मेरा पत्ता भी मॉम के बिना हिलता नहीं था। जब मैं हायर स्टडीज के लिए अमेरिका गई, तो मेरे आंखों से मॉम का भूत थोडा उतरा। मॉम में कितना धीरज और संयम है, सारे परिवार को अपने प्यार से बांधने की कितनी शक्ति है, इसका एहसास तब हुआ, जब पापा (संगीतकार अरुण पौडवाल) का देहांत हुआ।


मां के संगीत के बारे में मेरा कुछ कहना ठीक नहीं, सभी उनकी इस प्रतिभा के बारे में जानते हैं। मां एक बेहतरीन कुक भी हैं। ईश्वर में उनकी गहरी आस्था है। वो इसी विश्वास और श्रद्धा पर चलती हैं। उनका यह मानना है कि सभी की मंजिल विधाता ही तय करता है, हमें बस प्रयास करने चाहिए। हर मां अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के बारे में सोचती है, उस दिशा में सार्थक प्रयास करती है, पर मॉम जैसे पूरे परिवार की गॉडमदर हैं। उन्होंने हमारे भविष्य के बारे में बहुत कुछ किया। इसके अलावा वो निर्मल मन की और संवेदनशील हैं। मॉम की यह सबसे बडी अच्छाई है, पर मुझे लगता है कि उनका संवेदनशील होना ही उनका माइनस पॉइंट बन गया है। मेरी बेटी जो अब साढे तीन साल की है, वो भी लगता है अपनी नानी पर गई है। मां से बेटी की तुलना होना सदियों से चलती आई परंपरा है। मेरी भी मॉम से तुलना अकसर होती आई है। मैं मानती हूं


फिल्मी दुनिया ने अमिताभ-अभिषेक, धर्मेन्द्र-सनी, मुकेश-नितिन मुकेश किसी को भी तुलना से बख्शा नहीं गया, फिर मेरे और मॉम के बीच तुलना होना स्वाभाविक है। मैं दृढतापूर्वक इस बात को कहूंगी कि मैं जहां भी जाती हूं, मुझे जो आदर और सम्मान मिलता है, वो मां की बदौलत मिलता है। अपने माता-पिता की शोहरत की बुलंदियों से जो स्वयं को संकुचित पाए, शायद वो दुनिया में आगे नहीं बढ पाएगा। सही भावना रखने की क्षमता भी मां ने ही मुझमें जगाई है। यह उन्हीं की सीख है कि चाहे सफलता मिले या असफलता, पांव जमीं पर ही रहें।

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वह मेरी शक्ति हैं, आलोचक भी

एषा देओल (पुत्री हेमा मालिनी)

यह गर्व की बात है कि मुझे अपने जमाने की स्वप्नसुंदरी हेमा मालिनी ने जन्म दिया। हमें पाल-पोस कर जिम्मेदार बनाने में हमारी मां का योगदान सामान्य से कहीं ज्यादा है। हम दोनों बहनों को ढेर सारा प्यार, लेकिन अनुशासन के साथ मिला। आर्थिक संपन्नता के बावजूद हमें कभी किसी चीज की छूट नहीं मिली। यही कारण है कि हम भले ही सिने जगत की दुनिया से संबंध रखने वाले हों, लेकिन धरती पर रहना हमें सिखाया गया। सामान्य ढंग से हमें पाला गया और दूसरी श्रेणी के डिब्बे में व रिक्शे तक में हमने सवारी की। पर मां कितनी भी व्यस्त क्यों न हों, हमारी पढाई-लिखाई के साथ खाना-पीना तक अपने स्वयं की देख-रेख में किया उन्होंने। हां, यह जरूर है कि सामान्य बच्चों से हमें अलग समझा जाता था। फुटबॉल की मैं बहुत शौकीन थी। एक बार फुटबाल का मैच खेलने शोलापुर गई, तो हेमा-धरम की बेटी को देखने के लिए इतनी भीड लग गई कि मैं ठीक से खेल नहीं पाई। जहां तक तुलना का प्रश्न है, वह हर कदम पर होती गई। कभी-कभी बुरा भी लगता था। हो सकता है कि दर्शकों के दिल में अपनी विशिष्ट छाप छोडने के कारण यह पूर्वाग्रह रहता हो। धीरे-धीरे मैं जो हूं उसी रूप में मेरी पहचान होने लगी।


जहां तक खूबसूरती का सवाल है, मेरा मां से कोई मुकाबला नहीं। मैं उनके सामने कहीं नहीं ठहरती। आज उम्र के इस दौर में पहुंच कर भी वह जितनी सुंदर व ग्लैमरस लगती हैं, उतनी मैं नहीं लगती। बचपन में यह भावना मुझे सालती थी कि मैं उनकी तरह क्यों नहीं, लेकिन अब नहीं। मैं बचपन से अभिनेत्री बनना चाहती थी, लेकिन अपने दम पर, इसीलिए जो भी फिल्में मैंने कीं, अपनी योग्यता के बल पर कीं। मां मेरी अच्छी आलोचक भी हैं और शक्ति भी। वह कदम-कदम पर मुझे प्रोत्साहित करती हैं व मेरी कमियां भी बताती हैं। मां के साथ नृत्य पेश करते हुए लगता है कि मुझसे कोई गलती हो भी गई तो वह संभाल लेंगी।


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सही सोच और उन्मुक्त विचार मिले मां से – अजान (पुत्र पूर्व मिस इंडिया, मॉडल व ज्यूलरी डिजाइनर नैना बलसावर)

इसमें संदेह नहीं कि एक घर को चलाने व बच्चों को काबिल बनाने में मां की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मां कितनी भी व्यस्त रही हों हमारे लिए सबसे पहले थीं। वह पहले मॉडल थीं, फिर मिस इंडिया बनीं। लेकिन उन्हें लेकर कभी असुरक्षा की भावना मेरे अंदर नहीं आई। मैं कॉमर्स का विद्यार्थी हूं, क्या बनूंगा, क्या नहीं, यह अभी तक सोचा नहीं। पौधा वैसे ही विकसित होगा, जैसी मिट्टी, पानी और खाद उसे मिलेगा। नींव मजबूत है तो इमारत भी मजबूत बनेगी। कुछ ऐसा ही पालन-पोषण हमारा हुआ। सही सोच और उन्मुक्त विचार हमें मिले। मां अपने समय में बहुत आकर्षक थीं, आज भी हैं। हर अच्छी चीज को सराहने वाले तो ही हैं। उनकी तारीफ हम सबको भी अच्छी लगती है। वह और पापा दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र के सेलिब्रिटी रहे हैं इसलिए सार्वजनिक समारोह या पार्टियों में वे दोनों ही केंद्र में रहते हैं, पर ये सब हमने शुरू से ही देखा है इसलिए हमें अजीब नहीं लगता।


मैं मां की तरह हूं इसका फक है मुझेरणबीर कपूर (पुत्र नीतू सिंह)

मेरी पहली फिल्म सांवरिया जब प्रदर्शित हुई, तो मेरे लुक्स के बारे में हर दूसरे शख्स का यह कहना था कि मेरे लुक्स मॉम से मिलते हैं। यह भी सुना था कि यदि बेटा मां जैसे दिखता है, तो वो भाग्यशाली होता है, बेटी यदि पिता जैसी दिखती हो, तो वह भाग्यशाली होती है। खैर, सच्चाई जो भी हो, पर मैं मॉम जैसे दिखता हूं। मैं भाग्यशाली ही कहलाऊंगा, क्योंकि मुझे पहली फिल्म के प्रदर्शित होते ही अच्छी सफलता मिली। वैसे मॉम से मेरी काफी जमती है, लेकिन अपने घर में मैंने मॉम को बरसों से इतना डिसिप्लिन्ड देखा है कि अनुशासन क्या होता है, यह कोई उनसे जाने। मैं कितनी बार पापा से मजाक में कहता रहता हूं कि मॉम के हाथों में अपने देश की बागडोर देनी चाहिए, जो उन्नति करने में हमें 60 साल लगे, उसके लिए 5 साल काफी होंगे। मॉम काफी संवेदनशील भी हैं। पर उनकी संवेदनशीलता कभी भी उनके अनुशासन के आडे नहीं आती। बात सुबह जल्दी उठने की हो या खुद एक्सरसाइज करने की हो, वे हर हाल में अपना ध्येय पूरा करके रहती हैं। शायद कोई यकीन करे या न करे, पर वो फिटनेस के मामले में बहुत ज्यादा सतर्क हैं। आज पापा बरसों से फिल्मों में काम करते चले आए हैं, यदि मॉम ने उनके खानपान पर ध्यान न दिया होता, तो वे फूलकर गोलगप्पा हो जाते। उन्होंने हमें अनुशासन से जीने का, खानपान का मूलमंत्र सिखाया। हमें आज तक सेलिब्रिटी के बच्चे होने का एहसास नहीं करवाया। बडों से कैसे आदर के साथ बात करें, हमारा बिहेवियर कैसा हो, यह उन्होंने मुझे सिखाया। मेरे बचपन का बहुत सारा वक्त फिल्मों के सेट पर शूटिंगों में बीता। अमित अंकल से लेकर विनोद अंकल सभी की नायिका रह चुकीं मॉम के लिए अपने पति, बच्चे और कपूर परिवार के बढकर कुछ और नहीं था। आज इक्कीसवीं सदी में ऐसी कोई स्त्री शायद ही देखने मिलेगी। उनमें प्रतिभा तो रही ही है, उसके साथ सौंदर्य और सेक्स अपील भी रहा। सेक्सी लिबास पहने बिना भी वो बडी खूबसूरत-आकर्षक लगती थीं। दिल-दिमाग और शरीर ईश्वर ने एकसाथ इन तीनों में उन्हें खूबसूरती दी है। पूरे कपूर परिवार को जैसे अपने प्यार के डोर में बांधे रखा उन्होंने। हमारे पारिवारिक जीवन में कई उतार-चढाव आए, पर मॉम निश्चल रही, जैसे कोई स्थितिप्रज्ञ हो। मेरा ध्येय जैसे हमेशा एक्टर बनने का ही था। बडी मुश्किल से मॉम-पापा को पटाकर मैंने न्यूयॉर्क के विजुएल आर्ट कॉलेज में एडमिशन लेना चाहा, तो पापा ने कहा था – यदि तुझे उस कॉलेज में एडमिशन मिल जाता है, तो ही बतौर एक्टर तू करियर बनाए, इसमें हमारी रुचि होगी, वरना एक्टिंग भूल जाना। यह तीन साल का डिप्लोमा था। मुझे वहां एडमिशन नहीं मिला। मैं इतना मायूस व निराश हो गया कि मेरा खाना-पीना बंद हो गया। पापा भी निराश हो गए। लेकिन अकेली ममा थीं, जो मुझे हौसला देती रहीं। यह उनकी सकारात्मक सोच का ही नतीजा रहा कि मुझे वहां एडमिशन दिलाने में कामयाब रहीं वो। मैं मॉम जैसा दिखता हूं, पर उनके गुणों से मेरी दूर-दूर तक कोई तुलना नहीं हो सकती। मेरी राय में ममा में कोई कमी नहीं। हर संकट में उन्हें ही रास्ता नजर आता है। ऐसे व्यक्ति में कोई कमी क्या होगी?


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मॉम ग्रेट हैं मेरी – अरमाना (पुत्री नफीसा अली)

यह सबको मालूम है कि मॉम ने उस समय अपने करियर से ब्रेक लिया, जिस समय वह अपने क्षेत्र की पराकाष्ठा पर थीं। उनके लिए परिवार व बच्चे प्राथमिकता पर थे। बचपन से हमें सही परवरिश मिली। पापा डॉक्टर थे व मां पहले अभिनेत्री, बाद में समाज सेवा के कार्यो से जुडीं। मैं यूं तो दोनों के साथ गहराई से जुडी थी, लेकिन ज्यादा समय मां के साथ बीतने के कारण उनसे प्रभावित थी। एक बात बहुत अच्छी थी मां-पापा में, वह यह कि कभी भी उन्होंने किसी चीज के लिए हमें बाध्य नहीं किया। हमें अपना फील्ड चुनने की पूरी आजादी दी। अपनी मर्जी से उनके नाम का सहारा लिए बिना मैंने अपनी जगह खुद से बनाने की कोशिश की है। उन्हें देखकर मैं हैरान हो जाती हूं कि वह एकसाथ इतने काम कैसे कर पाती हैं। सच कहूं तो वह मेरी ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत हैं। वह खूबसूरत हैं, ग्लैमरस हैं, इससे इंकार नहीं, उनकी जैसी खूबसूरती हम सभी भाई-बहनों में से किसी में भी नहीं आई शायद। पर बाह्य सौंदर्य ही सबकुछ नहीं होता, आंतरिक सौंदर्य होना भी जरूरी है, यह उन्हीं से सीखा है मैंने। यह हमारी खुशकिस्मती है कि उनकी जैसी मां हमें मिली।


कहीं कोई तुलना नहीं – साहिबा (पुत्री पेंटर इलूष अहलूवालिया)

मेरी मां इस उम्र में भी खूबसूरत और आकर्षक हैं, इसे सभी मानते हैं। यह उनके लिए भी कॉम्प्लीमेंट है व मेरे लिए भी क्योंकि वह मेरी मां हैं। हर किसी को तारीफ अच्छी लगती है और मेरे हिसाब से लगनी भी चाहिए। मैं मां-पापा दोनों से ही जुडी हूं, पर एक ही जेंडर की होने के कारण मां से ज्यादा शेयरिंग हूं। मां ने हमें पालने-पोसने में कोई कसर नहीं छोडी। लाड-दुलार का मतलब बच्चों को खराब करना नहीं होता, इसलिए पूरे अनुशासन के साथ उनका लाड-दुलार रहा। मां होने के साथ-साथ वह अच्छी दोस्त भी हैं। वह केवल सुंदर नहीं बुद्धिमान भीहैं, उन्हें अपने करियर और परिवार की आवश्यकताओं की पूरी समझ है। इसलिए हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। कला प्रेमी मां की संतान होने में लाभ ही लाभ है। आपको खुली सोच व आजाद माहौल मिलता है। हर कदम पर एक अच्छा मार्गदर्शन भी सहज उपलब्ध होता है। जहां तक तुलना का सवाल है, अभी उनसे मेरी कोई भी तुलना बेमानी है, क्योंकि वह सफलता के सोपान चढ चुकी हैं और मेरा करियर अभी बन रहा है। मुझे अभी बहुत से काम करने हैं और खुद की जगह बनानी है। मेरा मानना है कि मां-बेटी में तुलना हो ही नहीं सकती। वैसे भी किन्हीं दो व्यक्तियों की तुलना कठिन है, क्योंकि हर व्यक्ति की विचारधारा और शख्सीयत दूसरे से अलग होती है।


सुपर मॉम हैं मेरी मां – श्रिया पिलगांवकर (पुत्री सुप्रिया पिलगांवकर)

मैं इस वक्त सेंट जेवियर कॉलेज से बी.ए. सेकेंड इयर कर रही हूं। मेरी मम्मी जिन्हें सुपर मॉम मानती हूं मैं, मेरी बेस्ट फ्रेंड भी हैं। उन्होंने मेरे लिए बहुत त्याग किया है। वह मुझे शुरू से ही बहुत सपोर्ट करती रही हैं। उन्होंने मेरे लिए अपने करियर को पीछे रखा था। जब मैं छोटी थी, वो मुझे अपने साथ स्विमिंग सिखाने और स्पो‌र्ट्स के लिए ले जाती थीं। आज भी वह खुद ड्राइव करके मुझे हर जगह ले जाती हैं। मम्मी मेरी दोस्त की तरह नहीं हैं, वो वाकई मेरी दोस्त हैं। गजब का टैलेंट है उनमें। सच मानिए तो मुझे गर्व होता है कि मैं उनकी बेटी हूं। जब मैं छोटी थी, मेरी परवरिश ढंग से करने के लिए वे सीरियल्स भी नहीं करती थीं। अब तो उन्हें कम समय मिलता है, लेकिन जितना मिलता है, उसे वह मेरे साथ पूरा एंजॉय करती हैं। मेरी मम्मी की सबसे बडी खूबी यह है कि उन्हें मीनिंगफुल रोल करना आता है। वह एक्टिंग में भी रिएलिटी भर देती हैं। उनकी यही विशेषता उन्हें औरों से अलग करती है। जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं यह कहूंगी कि मैं एक कन्फ्यूज्ड टीनएजर हूं। पर मेरी मम्मी को हमारी उम्र के बच्चों के साथ कैसे पेश आना चाहिए, बखूबी मालूम है। मैं पापा से ज्यादा मम्मी के करीब हूं। मैंने ज्यादा वक्त मम्मी के साथ ही बिताया है, पापा काम में व्यस्त जो रहते हैं। मुझे डांस का भी शौक है। मम्मी ने नच बलिए में जो डांस किया और एवार्ड जीता, उससे मुझे बहुत खुशी हुई। हालांकि उससे पहले उन्हें इस ओर इतना रुझान नहीं था, लेकिन उन्होंने साबित कर दिखाया कि वह वर्सेटाइल लेडी हैं, जो चाहती हैं उसे पूरा करके दिखाती हैं। उनमें अच्छा रिद्म सेंस हैं। मेरी मम्मी खुद के लिए कभी कुछ नहीं करतीं। जब उन्हें शूटिंग से फुर्सत मिलती है तो वह सिर्फ घर पर बैठना पसंद करती हैं। मेरी इच्छा है कि कोई एक दिन सिर्फ अपनी मम्मी के नाम कर दूं, जिस दिन उनके लिए शॉपिंग करूं, उन्हें पार्लर ले जाऊं और पूरी तरह से उन्हें सुख दूं। मम्मी ने मेरे साथ ऐसा रिश्ता शुरू से ही रखा है, जिसमें मुझे उनसे कुछ छिपाना नहीं पडता है। मैं हर बात उनसे खुलकर कर लेती हूं। मैं बचपन से ही सिंपल तरीके से बडी हुई हूं। एक आम और साधारण लडकी की तरह मेरी मम्मी ने मेरी परवरिश की है। इसलिए मेरे उनके बीच कभी कम्यूनिकेशन गैप नहीं होता है। मम्मी को अपने संस्कारों पर विश्वास है और मुझे अपनी मॉम पर। मेरी मम्मी हर काम को बहुत परफेक्शन से करती हैं। मैं मम्मी पर कई बार इस बात को लेकर गुस्सा हो जाती हूं कि वह खुद पर ध्यान नहीं देतीं। जिंदगी में खुद के लिए कुछ करना बहुत जरूरी होता है। उनकी खूबी है कि मैंने अगर जेनुइनली कोई बात दिल से उनसे कही तो वह उसे मान भी जाती हैं और सीखती भी हैं। मैं मम्मी जैसी ही हूं, इसलिए कोई तुलना का सवाल ही नहीं पैदा होता।

हां, मम्मी की तरह मैं शांत जरूर हूं। मम्मी के सब अच्छे गुण मुझमें आए हैं, बस मैं काम में उनकी तरह परफेक्शनिस्ट नहीं हूं। अभी कम उम्र की हूं। उम्र का असर धीरे-धीरे जैसे-जैसे मेरे ऊपर होता जाएगा, मैं भी उनकी तरह परफेक्शनिस्ट हो जाऊंगी। मेरी मम्मी की बहुत कम उम्र में ही शादी हो गई थी और उन्होंने उसके बावजूद फैमिली लाइफ इतने अच्छे ढंग से जी, कि उसका कोई जवाब नहीं। आनेवाले समय में मैं उनकी ही तरह कुछ करना चाहती हूं।


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