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स्त्रियों को ऑनलाइन मजा नहीं आता

Jagran Sakhi
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working womenसच कहते है कि स्त्रियों को समझ पाना बहुत मुश्किल हैं । देखिए ना यह भी तो हद वाली बात है कि स्त्रियों को ऑनलाइन में मजा ही नहीं आता हैं खास बात तो यह है कि अगर स्त्री देश से बाहर है तो उसे ऑनलाइन में मजा ही नहीं आएगा। स्स्त्रियों को कामकाजी जीवन से जुडी यात्राएं ज्यादा पसंद आती हैं। पिछले वर्ष भारत मेंएक ऑनलाइन ट्रेवल और टूरिज्म वेबसाइट द्वारा कराए गए सर्वे में यह मजेदार नतीजा निकला है।


अध्ययन में कहा गया, स्त्रियां कंपनी की ओर से यात्रा पर जाना पसंद करती हैं और उन्हें स्काइप या विडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी सुविधाएं पसंद नहीं हैं। इनसे उनकी यात्राओं में कमी आई है। यह सर्वे वर्ष 2011 की पहली छमाही में कराया गया। इसमें सरकारी, प्राइवेट और मल्टीनेशनल कंपनियों के कर्मचारियों सहित स्व-रोजगार में लगे लोगों को भी शामिल किया गया।


यात्राएं देती हैं विस्तार

लगभग 41 देशों में काम करने वाले एक ग्लोबल ट्रेवल पोर्टल ने यह सर्वे कराया। सर्वे में भारतीय स्त्रियों की कामकाजी जीवनशैली एवं व्यवहार के बारे में दिलचस्प नतीजे निकले।


लगभग 94 प्रतिशत स्त्रियों ने कहा कि वे नौकरी के सिलसिले में होने वाली यात्राएं पसंद करती हैं, जबकि महज 87 प्रतिशत पुरुषों को ऐसी यात्राएं पसंद हैं। 84 प्रतिशत स्त्रियों ने माना कि टेक्नोलॉजी ने उनकी यात्राओं को बाधित किया है, जबकि केवल 63 प्रतिशत पुरुषों ने इस बात को सही माना।


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सर्वे में कहा गया कि जब नौकरीपेशा स्त्रियां यात्राओं पर जाती हैं तो उनके दिमाग में घर-गृहस्थी का तनाव नहीं होता। दरअसल उन्हें इस बात की अधिक चिंता होती है कि उनकी अनुपस्थिति में ऑफिस का काम प्रभावित हो सकता है, जबकि पुरुषों के दिमाग में यात्रा के दौरान घर व बच्चों से जुडी चिंताएं अधिक होती हैं। शायद इसीलिए उन्हें स्काइप या विडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी सुविधाएं अच्छी लगती हैं। इसके जरिये वे यात्रा के बिना भी ऑफिशियल काम पूरे कर लेते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अविवाहित लडकियां, जिनकी उम्र 22 से 25 के बीच है, लंबी दूरी की यात्राएं (खासतौर पर हवाई यात्राएं) पसंद करती हैं। वे बिजनेस ट्रिप के दौरान ही अपना पर्सनल हॉलीडे भी मना लेती हैं। 54 प्रतिशत स्त्रियों ने कहा कि वे बिजनेस ट्रिप्स पर जाना चाहती हैं, जबकि महज 9 प्रतिशत पुरुषों ने ऐसी इच्छा जाहिर की।



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सफर से जुडी है आजादी

अजमेर (राजस्थान) की समाजशास्त्री डॉ. ऋतु सारस्वत कहती हैं, यात्राएं स्त्रियों में आत्मविश्वास व स्वतंत्रता का भाव भरती हैं। आज स्त्रियां दो विपरीत ध्रुवों के बीच खडी हैं। एक ओर निजी पहचान की जद्दोजहद है तो दूसरी ओर उनकी घरेलू छवि को बरकरार रखने की परिजनों की कवायद। वे नौकरी करें-पैसा कमाएं, लेकिन घर की जिम्मेदारियां भी समय से निभाएं। उन्हें हर जगह अपना सौ फीसदी देना है। कार्यक्षेत्र में काबिलीयत साबित करनी है तो घर में भी कोई छूट इसलिए नहीं मिल सकती कि वेनौकरी करती हैं। इसलिए कामकाज के सिलसिले में जब उन्हें यात्रा का मौका मिलता है तो वे इसे पूरी तरह एंजॉय करती हैं। इससे एकओर उन्हें यह महसूस होता है कि उनका काम महत्वपूर्ण है, दूसरी ओर करियर में भी आगे बढने का मौका मिलता है।


काम के बीच फुर्सत के पल

स्त्रियों को नौकरी या बिजनेस के सिलसिले में होने वाली यात्राएं क्यों पसंद हैं, इसका एक जवाब यह भी है कि उनके जीवन में सुकून के पल बेहद कम होते हैं। यात्राओं के जरिये घर-गृहस्थी के खटरागों से वे कुछ पल मुक्ति पा जाती हैं। उन्हें यह नहीं देखना होता कि पति और बच्चों का लंच-बॉक्स तैयार है या नहीं, स्कूल यूनिफॉर्म धुली है या नहीं! उनके सामने बच्चों के होम वर्क या प्रोजेक्ट्स तैयार कराने की मारामारी नहीं होती और वे पुरुषों की तरह ही कुछ देर टीवी देख सकती हैं, मैगजींस पढ सकती हैं, कहती हैं दिल्ली की लाइफस्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह।


एक रिजॉर्ट व होटल ग्रुप द्वारा कराए गए हालिया सर्वे के मुताबिक फीमेल बिजनेस ट्रेवलर्स होटल की सुख-सुविधाओं का पूरा लाभ लेती हैं। उन्हें कभी-कभी ही ऐसा अवसर मिलता है, जब वे पूरी तरह आराम कर सकती हैं। उन्हें अच्छा लगता है कि कोई दूसरा उनका कमरा साफ करे, उनका ब्रेकफस्ट या लंच तैयार करे। घर में इन कामों के लिए उन्हीं को मगजमारी करनी होती है, जबकि होटल में रूम सर्विस में उन्हें सब कुछ तैयार मिलता है। 58 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 71 प्रतिशत स्त्रियों को होटल में रहना इसलिए अच्छा लगता है कि उन्हें अपना कमरा साफ-सुथरा मिलता है। 62 प्रतिशत स्त्रियों को इस बात से खुशी मिलती है कि कोई और उनका नाश्ता तैयार करता है, जबकि केवल 49 प्रतिशत पुरुषों को इसमें खुशी मिलती है। 51 प्रतिशत स्त्रियां यह भी पसंद करती हैं कि सोने से पहले उन्हें बिस्तर तैयार मिलता है, जबकि केवल 37 प्रतिशत पुरुष इस पर गौर कर पाते हैं।


सर्वे के नतीजे बताते हैं कि स्त्रियों को घर में खाना बनाने व सफाई करने में पुरुषों की तुलना में ज्यादा वक्त खर्च करना होता है। एक शोध के दौरान पाया गया कि अभी भी परिवारों के परंपरागत ढांचे में कोई बडा परिवर्तन नहीं आया है और ऐसी स्थिति भारत ही नहीं, दुनिया की लगभग हर संस्कृति में है। हर जगह स्त्रियों से घरेलू जिम्मेदारियां निभाने की उम्मीद की जाती है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे बच्चों के लिए आदर्श मां साबित हो सकें। ऐसे में जब उन्हें काम के सिलसिले में यात्रा करने का मौका मिलता है तो उन्हें अपनी नीरस दिनचर्या से मुक्ति मिलती है। उन्हें पुरुषों की तरह ही सारी सुविधाएं मिलती हैं, इसलिए फीमेल बिजनेस ट्रेवलर्स होटल प‌र्क्स सबसे ज्यादा पसंद करती हैं।


सफर में सेहत

स्त्रियां सफर के दौरान सेहतमंद भोजन को भी प्राथमिकता देती हैं। ऐसी स्त्रियां जिन्हें लगातार यात्राएं करनी होती हैं, वे आमतौर पर ऐसा भोजन पसंद करती हैं, जो घर जैसा लगे। प्रोफेशनल स्त्रियों के लिए काम करने वाले एक बिजनेस ट्रेवल नेटवर्क के ग्लोबल सर्वे के अनुसार 43 प्रतिशत स्त्रियों ने होटल में बीन एवं सीड सैलेड, स्प्राउट्स, वेजटेबल या चिकन सूप्स, जूसेज या हाई प्रोटीन डाइट को ही अधिक प्राथमिकता दी। स्टीम्ड फिश या चिकन भी पॉपुलर हैं। अधिकतर प्रोफेशनल्स ने कहा कि उन्हें होटल के किचन में जाकर खाना बनाने की प्रक्रिया को देखने का मौका मिले तो वे खुश होंगी। इसके अलावा वे यह भी चाहती हैं कि उन्हें अपने स्वाद के मुताबिक डिशेज में बदलाव करने की सुविधा मिले। यहां तक कि कई बार वे यह डिमांड भी करती हैं कि डिशेज के साथ उन्हें कैलरी कंटेंट चार्ट उपलब्ध कराया जाए। हेल्थ के बारे में वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा सजग हैं। रूम सर्विस में उन्हें फीमेल स्टाफ ज्यादा भाता है, क्योंकि उनके साथ वे सहज रहती हैं। यह ग्लोबल सर्वे कहता है कि स्त्रियों की तुलना में पुरुष ट्रेवलर्स स्पाइसी खाना ज्यादा पसंद करते हैं। उन्हें इस बात से अधिक फर्क नहीं पडता कि उन्हें जो परोसा जा रहा है, वह सेहतमंद है या नहीं।


इस राह में कोई हमराह नहीं

स्त्रियों को घर पर रहना अच्छा लगता है या घूमना? उन्हें अकेले यात्रा करना भाता है या परिवार के साथ? इसका जवाब निर्भर करता है परिस्थितियों पर। एक ओर घर के इर्द-गिर्द उनकी दुनिया होती है, लेकिन दूसरी ओर उन्हें दुनिया को अपनी नजर से देखना भी अच्छा लगता है।

नोएडा की एक कंपनी में मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत नीलिमा कहती हैं, हालांकि मैं परिवार के साथ यात्रा करना पसंद करती हूं, लेकिन कई बार मुझे अकेले यात्रा पर जाना भी पसंद है। दरअसल बच्चे साथ में होते हैं तो उन्हीं की डिमांड पूरी करने में जुटी रहती हूं, किसी भी जगह को ठीक तरह से देख नहीं पाती। अकेले जाने पर मैं उन जगहों को ठीक से देख पाती हूं। मुझे महीने में कम से कम दो बार ऑफिशियल टूर पर जाना होता है। मेरे सास-ससुर साथ रहते हैं, इसलिए मुझे चिंता नहीं होती। इस जॉब के कारण मुझे भारत के अलावा दुबई, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग जैसी कई जगहों को देखने का मौका मिला है। हमारी बोर्ड मीटिंग्स विदेशों में ही होती हैं। शाम को समय मिलने पर अकेले घूमने और शॉपिंग करने का लुत्फ उठाती हूं।


स्त्रियां अपने यात्रा के अनुभव फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर शेयर करना भी पसंद करती हैं। अधिकतर स्त्रियां अपने प्रोफाइल में लिखती हैं कि उन्हें यात्राएं पसंद हैं। यू.एस. में किया गया एक सर्वे बताता है कि यात्रियों के लिए फेसबुक टॉप सोशल साइट है। इस साइट को फोटो व विडियो लोड करने के लिए सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाता है। वर्ष 2010 के आखिरी महीने में किए गए इस सर्वे के मुताबिक लगभग 46 प्रतिशत स्त्रियां ट्रिप के दौरान सोशल मीडिया का प्रयोग करती हैं।


जबकि 55 प्रतिशत स्त्रियां ट्रिप से पहले और 82 प्रतिशत ट्रिप के बाद इसका प्रयोग करती हैं। 35 से कम उम्र की 53 प्रतिशत स्त्रियां और इससे अधिक की 36 प्रतिशत स्त्रियां इन साइट्स का प्रयोग करती हैं। दिल्ली और बंगलौर स्थित वाउ क्लब (अकेली स्त्रियों की यात्रा को सुगम बनाने के लिए स्थापित संस्था) की संस्थापक सुमित्रा सेनापति कहती हैं, पिछले कुछ वर्षो से अकेले यात्रा करने वाली स्त्रियों की संख्या काफी बढी है। अकेले सफर करने वाली स्त्रियों में दिल्ली नंबर वन है। यात्रा में कई बार वे समान रुचियों वाली अन्य स्त्रियों से मिलती हैं और यह दोस्ती भविष्य में भी बरकरार रहती है। कई बार इस दौरान प्रोफेशनल रिश्ते भी बनते हैं। स्त्रियों को सुरक्षा की चिंता सबसे अधिक होती है। इसलिए हमारी कोशिश होती है कि वे जो भी लोकेशन चुनें, वह सुरक्षित हो। सुरक्षा के लिहाज से हम स्त्रियों को बडे ग्रुप्स में ले जाते हैं। हमारे पास आने वाली स्त्रियों की उम्र 25 से 65 वर्ष के बीच ज्यादा है।


यात्राएं जीवन की एकरसता को तोडती हैं और व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं। फिर भले ही ये कामकाजी जीवन से जुडी हों या निजी जीवन से। यात्राएं दुनिया को करीब से देखने का मौका देती हैं। ये सिखाती हैं कि हर किसी को अपने रास्ते खुद बनाने होते हैं। यात्राएं सिखाती हैं कि चलने का नाम ही जिंदगी है..।


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