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शादी देर से क्यों की ?

Jagran Sakhi
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late2क्या कह रहे हो, अब इस उम्र में तुम शादी करोगे? दिमाग तो तुम्हारा ठीक है न! विनीत के मुंह से शादी का जिक्र सुनते ही मनु ऐसे उछला जैसे किसी अनहोनी की खबर सुन ली हो। पार्टी में शामिल बाकी दोस्तों की प्रतिक्रिया भी लगभग यही थी। पहले तो किसी को सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा था और हुआ भी तो कोई इस बात को सहज ढंग से स्वीकार नहीं कर पा रहा था। लगे हाथ शुरू हो गए किस्से भी कि किसने किस उम्र में शादी की तो उसे आगे चलकर क्या-क्या झेलना पडा।


ऐन वक्त पर अगर विशाल ने दखल न दिया होता तो विनीत की तो हिम्मत टूट ही जाती। कम से कम एक बार अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए तो मजबूर हो ही गया था वह। तभी विशाल ने अपने अंदाज में फटकारा था सबको, क्या होता है भई देर से शादी करने से? ऐं.. क्या होता है? कोई विनीत पहला शख्स है जो इस उम्र में शादी करने जा रहा है? इसके पहले भी बहुत लोगों ने 40 के बाद शादी की है। 40 ही क्यों, इस दुनिया में 50 और 60 के बाद भी लोगों ने शादियां की हैं। वे भी इसी धरती पर हैं और सुखी रहे हैं। और ऐसे भी लोग हुए हैं जिन्होंने 20 से पहले शादियां की हैं और उनमें भी कई लोगों की शादियां सफल नहीं हुई हैं। ये गुजरे जमाने की बातें सोचनी छोड दो। मान लो . जब तू जागे तभी सवेरा..


ये उम्र की सीमा

भारत में विवाह की उम्र आमतौर पर 20 के 30 के बीच ही मानी जाती है। हालांकि बमुश्किल बीस साल पहले यह उम्र और भी कम थी। उन दिनों आम तौर पर 25 की उम्र पूरी करने से पहले ही शादियां हो जाती थीं। इससे भी पहले अगर आजादी से पहले की बात करें तो बाल विवाह आम बात थी। तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी भारत इस समस्या से पूरी तरह उबरा नहीं है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह हो ही रहे हैं। एक ऐसे समाज में जहां आबादी का एकबडा हिस्सा अबोध बचों के विवाह को सामान्य रूप से स्वीकार करता हो, जब कोई 40 या 50 की उम्र में शादी की बात करता है तो उस पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है।


पर यह बात भी अब कोई असामान्य नहीं रह गई है। अपने करियर पर ही पूरा ध्यान देने वाले ऐसे युवाओं की संख्या बडी तेजी से बढ रही है जो 35-40 की उम्र बीत जाने पर भी अविवाहित हैं। ये ऐसे लोग हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और उनके सामाजिक संपर्क का दायरा भी बहुत बडा है। अपने व्यावसायिक सामाजिक संपर्को और जिम्मेदारियों को निभाने में ही इतने व्यस्त हैं कि निजी जिंदगी के लिए सोचने का या तो इन्हें वक्त ही नहीं मिलता, या फिर अपनी अकेले की निजता में किसी दूसरे के स्थायी दखल के लिए वे स्पेस भी नहीं निकालना चाहते। ऐसे लोगों में स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं।


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जिंदगी में क्वालिटी

इसके पीछे कई तत्व कारण रूप में मौजूद हैं। सबसे बडी वजह तो जीवनस्तर के प्रति लोगों की बदली धारणा है। जैसे-तैसे जिंदगी गुजार लेने में अब किसी का विश्वास नहीं रह गया है। अब हर शख्स जिंदगी को पूरी शिद्दत से जीना चाहता है। उसे सिर्फ जिंदगी नहीं, जिंदगी में क्वालिटी भी चाहिए। इसकी एक जरूरी शर्त है ज्यादा पैसा और उसके लिए करियर में सफलता अनिवार्य है। लगातार बढती प्रतिस्पर्धा के इस दौर में करियर में सफलता का मतलब अब सिर्फ एक बार खुद को साबित कर लेने तक ही सीमित नहीं रह गया है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा और नित नए रंग बदलते बाजार के इस दौर में खुद को रोज-रोज साबित करना पडता है। इसके लिए सिर्फ व्यावसायिक योग्यता ही पर्याप्त नहीं है, उसे फायदेमंद बनाने के कई और हुनर भी सीखने पडते हैं और उन पर अमल भी करना होता है। 24 &7 की व्यस्तता वाले इस माहौल में व्यावसायिक पेंचीदगियों के सामने अपनी जरूरतें गौण हो गई हैं। फलत: विवाह जैसी जरूरतें कल पर ही टलती जा रही हैं। एक ऐसे कल पर जो कभी नहीं आता या आता भी है तो इतनी देर हो चुकी होती है कि..


पूरब-पश्चिम की बात

कुछ लोग भारत में इस प्रवृत्ति के बढने के पीछे सिर्फ पश्चिम के प्रभाव को कारण मानते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रोफेसर डॉ. अशुम गुप्ता का मानना है, आज के समाज में पूरब-पश्चिम जैसा कोई विभाजन रह ही नहीं गया है। आज पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है। विकास की किसी प्रक्रिया या किसी संकट के किसी देश में शुरू होने का समय थोडा आगे-पीछे हो सकता है, पर उससे प्रभावित सभी समान रूप से हैं। यह किसी खास समाज के संक्रमण का नहीं, समय की जरूरतों का असर है।


सच तो यह है कि इसका चिंताजनक असर जिन देशों में देखा जा रहा है, उनमें पूरब का एक देश सबसे ऊपर है। जापानी समाज इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। वहां बडी संख्या में लोगों के अविवाहित रह जाने तथा अधिकतर लोगों के बहुत देर से विवाह करने के कारण जन्मदर बहुत घट चुकी है और इसके चलते डेमोग्राफिक स्थितियां बिगड रही हैं। जर्मनी, इटली, स्पेन, ताइपेई और कोरिया में भी यह संकट देखा जा रहा है। वैसे इंग्लैंड और फ्रांस में यह संकट 19वीं शताब्दी के आरंभ से ही देखा जा रहा है। जर्मन डेमोग्राफर जी. मैकेनरॉथ जापानी समाज के संकट की वजह आर्थिक विकास की प्रक्रिया में ही तलाशते हैं। जबकि जापानी समाजशास्त्री एम. यामदा देर तक विवाह न करने वालों को पैरासाइट सिंगल्स का नाम देते हैं। पैरासाइट सिंगल्स यामदा उन अविवाहित लोगों को कहते हैं जिन्होंने सही समय पर विवाह नहीं किया और अपने पेरेंट्स के साथ रह रहे हैं। यामदा इसकी वजह जापान की भयावह महंगाई में देखते हैं, माता-पिता के साथ रहते हुए वे बहुत तरह के खर्र्चो से बच जाते हैं। इससे उनके लिए जिंदगी थोडी आसान हो जाती है। इसलिए अधिकतर युवा विवाह से बच रहे हैं।


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हावी हैं दूसरी जरूरतें

हालांकि भारत की स्थिति इससे भिन्न है। यहां विवाह से वे लोग नहीं बच रहे हैं, जिनके सामने खर्च का संकट है, बल्कि वे बच रहे हैं जिनके सामने कोई बडा उद्देश्य है। वह उद्देश्य उन्हें जिंदगी की अन्य जरूरतों से बडा दिखता है। उनके लिए जीवन का सारा सुख अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने तक सीमित है। उनके लिए विवाह का मसला पीछे छूट जाता है। जबकि कुछ लोग विवाह बहुत देर से करते हैं। यूं देखा जाए तो देर से विवाह करने वाले लोग आम तौर पर अपने करियर में पूरी तरह सेटल हो चुके होते हैं। इसके लिए ज्यादा जोखिम लेने की सुविधा उन्हें होती है। इन महत्वाकांक्षी युवाओं में कुछ अपने घर-परिवार से जुडे हैं तो कुछ भौतिक और भावनात्मक दोनों तरह से दूर भी। जो दूर हैं, वे क्षणिक सुख के लिए क्षणिक साथ को बेहतर विकल्प मानने लगे हैं। चूंकि महानगरीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप अब स्वीकार्य होता जा रहा है, तो इसके तमाम खतरों को जानते हुए भी कुछ लोग इसे भी अपना रहे हैं।


मुश्किल तब आती है जब ऐसे लोगों को विवाह की जरूरत महसूस होती है और यह जरूरत एक न एक दिन महसूस होती ही है। नई दिल्ली के जी.एम. मोदी हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अनीता गुप्ता के अनुसार, देर से विवाह के चलते स्त्री-पुरुष दोनों ही को फर्टिलिटी से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं। खास कर स्त्रियों को डिलिवरी में मुश्किल होती है। ऐसी स्त्रियों को अकसर सिजेरियन डिलिवरी करवानी पडती है।


मिल जाता है वक्त

1. व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।

2. पारिवारिक जिम्मेदारी न होने के कारण वह अपना पूरा ध्यान व्यावसायिक जरूरतों पर लगा सकता है। इससे करियर में सफलता जल्दी और आसानी से मिल सकती है।

3. स्त्री-पुरुष दोनों ही उम्र के साथ समझ के स्तर पर भी अधिक परिपक्व हो जाते हैं। इससे विभिन्न मुद्दों पर आपस में समझ बनाना आसान होता है।

4. पहले आर्थिक रूप से संपन्न हो जाने के कारण परिवार की जरूरतों को ज्यादा सही ढंग से पूरी कर पाते हैं।


दिक्कतें भी हैं बहुत

1. एक निश्चित उम्र के बाद फर्टिलिटी रेट में कमी आने लगती है। ऐसी स्थिति में बचे होने की संभावना घट जाती है।

2. देर से शादी के बाद डिलिवरी में भी परेशानी आती है। ऐसे मामलों में अकसर सिजेरियन डिलिवरी करानी पडती है।

3. कम उम्र के व्यक्ति के लिए खुद को नए व्यक्ति या परिवेश के अनुसार ढालना आसान होता है। जबकि अधिक उम्र में यह बहुत मुश्किल हो जाता है। अत: पति-पत्नी के बीच सामंजस्य में भी मुश्किलें आती हैं।

4. देर से शादी करने पर बचे भी देर से होते हैं। ऐसी स्थिति में बचों के जीवन को समय रहते सही दिशा देना बहुत मुश्किल होता है। इससे बाद का जीवन मुश्किल हो जाता है।



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